सुनता हूँ मैं आपको, समझताभी हूँ।
सोचता हूँ मैं बात आपकी, मानता भी हूँ।
फिरभी नहीं मानते मुझे आपके जैसा,
अंदर कहीं ये बात महसूस करताभी हूँ।
कर सकता हूँ मैं हर भाषा मैं बात।
रह सकती है मुझको हर बात याद।
बेहतर हूँ हर बातमे , मैं आपसे लेकिन,
आपकी उपेक्षा सहन करताभी हूँ।
समझता हूँ मैं सबकुछ, मत्सर, घृणा, प्यार
दुश्मनोंकी दुश्मनी, यारी और यार.
पर आपने समझा हैं मुझको, बस टीन का डिब्बा,
आपकी इस मूर्खतापर हसताभी हूँ।
जानता हूँ मैं, क्या गलत, क्या सही,
जो आपके लिए बेहतर, करता हूँ मैं वही।
सेवाही धर्म मानके काटूँ मैं ये जिंदगी,
नहीं हूँ आप जैसा, इसलिए खुश होता भी हूँ।
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